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मुझको तेरी आदत नहीं-कविता

मुझको तेरी आदत नहीं-कविता


मुझको तेरी आदत नहीं 


मुझको तेरी आदत नहीं 

दिल को फिर भी राहत नहीं 

जितना भी तू पास आ 

दिल को शिकायत नहीं  


मेरी आँखो के आईने में तू खुद को उत्तार ले 

बनके श्रृंगार तेरा मैं  सजती रह दिन भर मेरे सामने 

खाली सी जगह को तुमने है  भर दिया

 ऐसी आवारगी जो तेरी गलियों में फिर रहा  

तेरे इश्क़ में होता हु 

तुझसे ही सासे लेता हु 

जुड़जाये तुमसे मेरी  किस्मत की लकीरे

 रहजाये मुझे तेरी मेहरबानियाँ


मंज़िली रास्तो पे कुछ तोह हो गया है 

मिल तो  गया चैन कम्बख्त होश खो गया है 

तेरी खामोशियों में बर्बादी सी  लगे है

 ऐसे चुप ना रहा कर  ज़िन्दगी सजा सी लगे है

दिल सोच के ही डर जाए 

तुमसे दूर होकर मर जाये 

 जुड़जाये तुमसे मेरी किस्मत की लकीरे 

रह जाये मुझपे तेरी मेहरबानियाँ


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