बारिश
बारिश तुम कब आओगी
खेत खलियान सब सूखे है
खेत पड़े बंजर बैल कोल्हू प्यासे है
ग़ालिब की गजल में होता ज़िक्र तुम्हारा
तानसेन बारिश की धुन है गाता
फिर भी तुम नहीं आती
भूल चुकी बारिश भूल गयी है हमारी गली
याद आते है वो बचपन के दिन
बारिश के बाद पानी से भरे गड्ढो की
उछलते कूदते ,नहाते धोते, भागते फिरते याद आती है उन बच्चों की
उफनती हुई नदियां खुला हुआ सिवान
लहराते हुए धान की फसल याद आते है कीचड़ में लोगो का फिसलना
अफसोस बदलते हुए इंसानो से बदल चुकी है बारिश
हर मुसीबत से अनजान बनकर
बारिश के ना होने का अंजाम है हम